शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

महिला सशक्तिकरण

रेहड़ी से किया काम शुरू, आज 14 रेस्त्रां की मालकिन



रेहड़ी से किया काम शुरू, आज 14 रेस्त्रां की मालकिन, पढ़िए ऐसी 9 कहानियां

महिलाओं की जीवटता ने अपने संघर्ष से हमेशा ही ये सिद्ध किया है कि जरूरत पड़े तो वह कुछ भी कर गुजरती हैं। नामुमकिन को मुमकिन बना देती हैं। तमाम मुश्किलों और चुनौतियों के बीच अपने दम पर सफल होकर दिखाती हैं। नवराित्र पर हम ऐसी ही नौ महिलाओं की कहानियां लाए हैं, जिन्होंने जीवन में संघर्ष कर अलग मुकाम हासिल किया है। किसी ने उपेक्षा काे पराजित किया तो किसी ने खुद मौत का सामना कर दूसरों का भविष्य संवारा।
 
ईसाई परिवार की पैट्रिका ने ब्राह्मण लड़के से शादी की। दोनों परिवारों में इसे लेकर भयंकर नाराजगी थी। अपनों ने तो त्याग ही दिया था, पति भी रोज शराब पीकर उन्हें पीटता। घर में नमक-रोटी के लिए भी पैसे नहीं थे। उनके पास दो ही विकल्प थे- दोनों बच्चों के साथ आत्महत्या कर लें या फिर अपनी लड़ाई खुद लड़ें। पिता से मदद मांगी तो उन्होंने इनकार कर दिया। घर में ही अचार, जैम और सॉस बनाने लगीं। काम थोड़ा बहुत चल निकला था, लेकिन कमाई बहुत नहीं थी। इसलिए उन्होंने मरीना बीच पर अपनी छोटी सी गाड़ी में मोबाइल रेस्त्रां शुरू करने का सोचा। पीडब्ल्यूडी दफ्तर के सैकड़ों चक्कर लगाने के बाद उन्हें इसकी अनुमति मिली। पहले दिन कटलेट, समोसा, जूस और कॉफी का स्टॉल लगाया। एक कप कॉफी बेचकर मात्र 50 पैसे की कमाई हुई। फिर धीरे-धीरे लाेगों की जुबान पर उनके व्यंजनों का स्वाद चढ़ने लगा। पैसे ज्यादा आने लगे। बाद में तो उन्होंने चेन्नई में बेटी संदीपा के नाम पर 14 रेस्त्रां खोले, जहां से उन्हें अब हर राेज दो लाख रुपए की कमाई होती है।

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

बेरोजगारी से निर्माता-निर्देशक तक - अनुराग कश्यप

B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर

फिल्म निर्माता-निर्देशकअनुराग कश्यप का सिनेमा जितना अलग नजर आता है, अनुराग की जिंदगी भी अपने समकालीन बच्चों से उतनी ही अलग थी। 'गुलाल', 'देव डी' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसी फिल्मों से हिंदी सिनेमा में अपनी अलग जगह बनाने वाले अनुराग कश्यप का बचपन उत्तरप्रदेश के एक छोटे से कस्बे ओबरा में बीता है। आज अनुराग कश्यप का जन्मदिन है। अनुराग का जन्म गोरखपुर में हुआ था। अनुराग आज इंडीपेंडेट सिनेमा की अगुवाई करने वाले निर्माता और निर्देशकों में से एक हैं। अनुराग की जिंदगी से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि एक दफा अनुराग और उनका दोस्त पोर्नोग्राफिक मैगजीन का आयडिया लेकर एक पब्लिशर के पास पहुंच गए थे।
अनुराग के पिता यूपी इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में इंजीनियर थे और कई शहरों में उनका ट्रांसफर होता रहा, लिहाजा अनुराग की परवरिश भी यूपी के अलग-अलग हिस्सों में होती रही। अनुराग ने ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में भी पढ़ाई की। इसी दौरान उनका रुझान पढ़ने की ओर बढ़ता गया और उन्हें जो भी किताब मिलती वह उसे पढ़ डालते। अनुराग ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि सिंधिया स्कूल में वह अपनी कमजोर इंग्लिश के चलते अपने बैचमेट से घुल-मिल नहीं पाते थे, नतीजतन उन्होंने स्कूल की लाइब्रेरी में वक्त गुजारना शुरू कर दिया।
स्कूल की लाइब्रेरी में ही उन्होंने हिंदी साहित्य के कई नामी रायटर्स को पढ़ा। मजेदार बात यह है कि शरत चन्द्र का मशहूर उपन्यास 'देवदास' अनुराग ने अपने स्कूल में ही पढ़ा था, जिसको आधुनिक रंग में रंगकर उन्होंने बड़े पर्दे पर अपनी बेहतरीन फिल्म 'देव डी' का निर्माण किया। अनुराग ने हालांकि एक इंटरव्यू के दौरान यह भी स्वीकारा था कि उन्हें शरत चन्द्र का उपन्यास 'देवदास' पसंद ही नहीं आया था। अनुराग को लिखने का शौक था, लेकिन उनकी रचनाएं कभी भी स्कूल की मैगजीन में नहीं छपती थी, जिससे बाद में उन्होंने इन रचनाओं को लोगों को दिखाना ही बंद कर दिया।
B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर
लखनऊ में की मेडिकल एजुकेशन की तैयारी

अपनी स्कूली शिक्षा निपटाने के बाद अनुराग ने कुछ समय लखनऊ में मेडिकल एजुकेशन की तैयारी भी की। अनुराग की दिलचस्पी बॉयोलॉजी में तो थी, लेकिन वह बावजूद इसके डॉक्टर नहीं बनना चाहते थे। अनुराग चाहते थे कि वह साइंटिस्ट बनें। इसके बाद अनुराग कश्यप दिल्ली चले आए। अनुराग ने खुद अपने एक इंटरव्यू में स्वीकारा था कि कॉलेज में लड़कियों के पीछे दौड़ते रहने से उनकी पढ़ाई पर इसका असर पड़ा और यह वही दौर था जब उनका झुकाव सिनेमा की ओर होने लगा।

B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर

गोविंदा और अमिताभ के थे दीवाने

अनुराग ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि वह अपनी कॉलेज लाइफ में गोविंदा और अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन थे। कॉलेज में अनुराग लड़कियों को इम्प्रैस करने के लिए रंगीन कपड़े भी पहनने लगे थे, जैसा कि आमतौर पर होता है। अब अनुराग मानते हैं कि वह दौर बेवकूफियों का जरूर था, लेकिन वह भी अपने ही रंग का दौर था।
B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर
दिल्ली में रंगमंच के आए करीब, हबीब तनवीर के ग्रुप में नहीं मिली जगह

कुछ समय लखनऊ में बिताने के बाद अनुराग कश्यप यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली पहुंच गए। यहीं उनके एक दोस्त ने उनकी मुलाकात थियेटर से करवाई, जिसके बाद वह यूपीएससी के बहाने थियेटर में मशगूल रहने लगे। इस दौरान अनुराग को सबसे ज्यादा हबीब तनवीर के नाट्य ग्रुप 'नया थियेटर' और वरिष्ठ रंगकर्मी एन.के. शर्मा के ग्रुप 'एक्ट वन' से लगाव था। यह वही ग्रुप है जिससे मनोज बाजपेई और पीयूष मिश्रा जैसे मंझे हुए कलाकार निकले हैं। अनुराग हबीब तनवीर के ग्रुप से इतने प्रभावित हुए कि वह इसे ज्वाइन करना चाहते थे, लेकिन उन्हें इस ग्रुप में जगह नहीं मिल सकी। बाद में अनुराग हबीब साहब के नाटकों के टिकट बेचने लगे और इसके बाद वह प्रगतिशील नाटकों के लिए मशहूर 'जन नाट्य मंच' से जुड़े।
B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर
पोर्नोग्राफिक मैगजीन निकालने की भी की कोशिश

अनुराग कश्यप से जुड़ा हुआ एक दिलचस्प मामला भी है। दिल्ली में अनुराग ने एक दौर में अपने दोस्त संग मिलकर एक पोर्नोग्राफिक मैगजीन निकालने की कोशिश भी की, जिसमें वह सफल नहीं हो सके। अनुराग चाहते थे कि समाज में जो घट रहा है उस पर एक कार्टून बेस्ड पोर्नोग्राफिक मैगजीन प्रकाशित की जाए। इस योजना में उनका एक दोस्त भी शामिल था। बाद में जब अनुराग और उनका दोस्त पब्लिशर के पास इस आयडिया के साथ पहुंचे तो उनकी बड़ी छीछलेदारी हुई। कहतें हैं पब्लिशर ने दोनों को बहुत बुरा-भला और अश्लील करार देते हुए मारकर भगाया था।
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मुंबई, फिल्म फेस्टिवल और सिनेमा

अनुराग की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट मुंबई पहुंचना था। यहां पर अनुराग के पास कोई काम नहीं था और इसी दौरान मुंबई में एक फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हुआ था। यह 1993 की बात है। अनुराग ने इसी फिल्म फेस्टिवल में महज 10 दिनों में 50 फिल्में देख डाली। अनुराग सुबह फेस्टिवल के शुरू होने से लेकर शाम तक दिनभर में पांच फिल्में देखते थे। इस फेस्टिवल में वर्ल्ड सिनेमा से अनुराग रूबरू हुए और इसी ने उनकी जिंदगी के नजरिए को बदल कर रख दिया। इसके बाद अनुराग ने एक फिल्म कंपनी ज्वाइन कर ली।
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मुफ्त पटकथा लेखन से ब्लॉकबस्टर 'सत्या' तक

अनुराग कश्यप ने फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगल के दिनों में बहुत सी ऐसी फिल्मों की पटकथा भी लिखी, जिनके क्रेडिट में न तो उनका नाम आया और ना ही उन्हें इस काम के एवज में पैसे ही मिले। बतौर पटकथा लेखक अनुराग को फिल्म 'सत्या' से पहचान मिली। इससे पहले अनुराग एक टीवी सीरियल 'कभी कभी' की स्क्रिप्ट भी लिख चुके थे। 'सत्या' के बाद अनुराग कश्यप ने एक से बढ़कर एक हिंदी फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी। इनमें 'शूल', 'जंग', 'नायक' और 'वाटर' जैसी फिल्में शामिल हैं।
B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर
पहली फिल्म जो रिलीज ही नहीं हुई

अनुराग ने बतौर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म 'पांच' नए कलाकारोंं को लेकर बनाई। इस फिल्म को बनाने की अनुराग की जिद थी। अनुराग से कहा गया कि इंडस्ट्री में नए कलाकरों के साथ फिल्म नहीं बनाई जा सकती और इसी बात को उन्होंने चैलेंज की तरह लिया। इस फिल्म में न केवल कलाकार नए थे बल्कि कैमरामैन से लेकर तमाम टेक्निशियन भी नए थे। इसी फिल्म से केके मेनन जैसे एक्टर्स ने भी अपने अभिनय की शुरुआत की थी, लेकिन दुर्भाग्य से इस फिल्म पर सेंसर ने रोक लगा दी और यह आज तक रिलीज नहीं हो सकी है।
B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर
'ब्लैक फ्राइडे' ने दिलवाई पहचान

'पांच' पर पाबंदी लगने के बाद अनुराग के सामने अपनी दूसरी फिल्म को बनाने के लिए संकट खड़ा हो गया। उन्हें अपनी फिल्मों के लिए प्रोड्यूसर्स ही नहीं मिल रहे थे, फिर किसी तरह से बात बनी और मुंबई बम ब्लास्ट पर आधारित फिल्म 'ब्लैक फ्राइडे' अनुराग ने बनाई। संयोग से उस दौरान कोर्ट में मुंबई बम ब्लास्ट केस का ट्रायल चल रहा था और कोर्ट ने इस फिल्म पर भी फैसला आने तक रोक लगा दी। तब तक यह फिल्म कई फिल्म फेस्टिवलों में धूम मचा चुकी थी। इस फिल्म को विदेशों में लोगों की खूब तारीफ मिली। दो साल बाद यह फिल्म 2007 में भारत में रिलीज हो सकी।
B'Day: पोर्न कार्टून मैगजीन निकालना चाहते थे अनुराग, पढ़ें कैसे बने डायरेक्टर
'देव डी' ने बनाया बड़ा फिल्मकार

अनुराग कश्यप कभी भी अपने फिल्मों के कैरेक्टर को ब्लैक एंड व्हाइट में प्रेजेंट नहीं करते हैं। ब्रॉड थीम के साथ ही लव और हिंसा का मिक्सचर लिए उनकी फिल्मों ने एक नया दर्शक सिनेमा में तैयार किया है। 'ब्लैक फ्राइडे' की सफलता के बाद अनुराग कश्यप ने 'नो स्मोकिंग' फिल्म बनाई, जिसके सब्जेक्ट के चलते अनुराग की खूब आलोचना हुई और अनुराग को फिर से इंडस्ट्री ने किनारे लगा दिया। इसके बाद अनुराग कश्यप की एक और फिल्म आई 'देव डी' जिसने 'देवदास' के आधुनिक संस्करण से युवाओं को न केवल रूबरू करवाया, बल्कि सफलता के झंडे भी गाड़ दिए। इस फिल्म को शुरू करने के लिए अनुराग को एक बड़ा समझौता भी करना पड़ा था। अनुराग ने इस फिल्म के बदले में अपनी फीस छोड़ने का करार किया और यह तय हुआ कि फिल्म चली तो मुनाफे का कुछ हिस्सा अनुराग को मिलेगा। इसी हिस्से से अनुराग की 'अनुराग कश्यप फिल्म प्राइवेट लिमिटेड' की भी शुरूआत हो गई जो आज लो बजट फिल्में बनाने के लिए मशहूर है।

Anurag Kashyap Films Office Contact Details


Anurag Kashyap Films Office Address : Bungalow No 40, Aram Nagar Part 1, Seven Bunglow, Andheri West, Mumbai – 400061, Maharashtra, India
Anurag Kashyap Films Phone Numbers : 022-26341090, 26302791
Anurag Kashyap Films Official Website : www.akfpl.com


सोजन्य--

12 हजार के कैमरे से बना ली 10 करोड़ रुपए की कंपनी, पढ़ें कैसे



12 हजार के कैमरे से बना ली 10 करोड़ रुपए की कंपनी, पढ़ें कैसे


12 हजार के कैमरे से बना ली 10 करोड़ रुपए की कंपनी, पढ़ें कैसे

वर्ष 2000 में जब संदीप ने कैमरा खरीदा तो परिवार का मानना था कि शायद वह वेडिंग या पासपोर्ट फोटोग्राफर बनना चाहता है। किसी को ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि 12 हजार रुपए के कैमरे के साथ एक दिन वह 10 करोड़ की कंपनी का मालिक बन जाएगा। संदीप ने साबित कर दिखाया कि 'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश कारणों वालों की हार नहीं होती।' 

संदीप माहेश्वरी का नाम ऐसे लोगों की फेहरिस्त में शामिल किया जाता है जिन्होंने संघर्ष किया, असफल हुए लेकिन सफल होने की अपनी जिद छोड़ी नहीं। किसी भी मध्यम वर्ग के परिवार के युवक की तरह उसके भी कई अस्पष्ट सपने थे और जीवन के धुंधले से लक्ष्य थे जिनके साथ उसने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में बीकॉम में दाखिला लिया। इसी दौरान एल्यूमिनियम का उसका पुश्तैनी कारोबार ठप्प हो गया। इस मुश्किल घड़ी में हाथ बंटाने की जिम्मेदारी संदीप के हिस्से आना लाजमी था। 

संदीप ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और पढ़ाई के साथ-साथ मल्टीलेवल मार्केटिंग से लेकर घरेलू उत्पादों की मैन्यूफैक्चरिंग और मार्केटिंग तक जो बन पड़ा वो किया। इस वक्त संदीप को महसूस हुआ कि फॉर्मल एजुकेशन से आगे बढ़कर कुछ करना होगा। होनहार स्टूडेंट होने के बावजूद संदीप ने बीकॉम थर्ड ईयर में अपना कॉलेज छोड़ने का फैसला लिया। मॉडलिंग की दुनिया के ग्लैमर से आकर्षित होकर 19 वर्ष के संदीप ने मॉडल के रूप में अपना करियर बनाने का निर्णय लिया। इस काम के दौरान मॉडल्स के साथ होने वाले शोषण और उत्पीड़न को देखकर वह काफी विचलित हो गया। 
उन्होंने अनगिनत स्ट्रग्लिंग मॉडल्स की मदद करने की ठानी और इसी दिशा में एक छोटा सी पहल करते हुए फोटोग्राफी का दो सप्ताह का कोर्स ज्वॉइन किया। इसी कोर्स ने उसे दिशा दिखाई और उसने अपने स्टूडियो की शुरुआत की और उसे नाम दिया मैश ऑडियो विजुअल। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए संदीप ने इस स्टूडियो को छोटे से स्तर से शुरू किया। 
12 हजार के कैमरे से बना ली 10 करोड़ रुपए की कंपनी, पढ़ें कैसे

कायम किया वर्ल्ड रिकॉर्ड 
अपने स्टूडियो में संदीप मॉडल्स के पोर्टफोलियो बनाने लगा। वह एक दिन में करीब 5 से 6 पोर्टफोलियो मैनेज कर लेता। एक दिन उसने सोचा कि क्यों न वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जाए। अपने इस आइडिया के साथ उसने लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स से संपर्क किया। उन्होंने संदीप को कम से कम 100 लोगों के साथ 12 घंटों में 10,000 शॉट लेने का टारगेट दिया।
संदीप ने इस टारगेट को पूरा किया और लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह बना ली। 2003 में यह रिकॉर्ड बनाने के बाद संदीप रातों-रात मशहूर हो गया और लाइमलाइट में गया। लेकिन इस ग्लैमर और चकाचौंध में संदीप ने अपना फोकस खोया नहीं बल्कि इसे मॉडलिंग की दुनिया में अपने करियर को और उंचाई पर ले जाने के लिए ईंधन की तरह काम में लिया। तरक्की की राह पर आगे बढ़ते हुए संदीप ने दिल्ली में 15 लोगों की टीम के साथ अपना ऑफिस स्थापित किया। 
12 हजार के कैमरे से बना ली 10 करोड़ रुपए की कंपनी, पढ़ें कैसे
और करियर में आ ही गया टर्निंग पॉइंट 
संदीप का बिजनेस बढ़ने लगा और वह जल्दी ही दिल्ली का सबसे बड़ा पोर्टफोलियो मेकर बना गया। काम के दौरान संदीप को महसूस हुआ कि हिंदुस्तानी तस्वीरों को इंटरनेट पर स्टॉक नहीं किया जाता है जबकि स्टॉक फोटोग्राफी 1.5 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री है। इसी कमी से 26 साल के संदीप के दिमाग में स्टॉक फोटोग्राफी का आइडिया उपजा और उसने 2006 में इमेजेज बाजार को लॉन्च किया। आज इमेज बाजार 10,400 फोटोग्राफर्स की 10 लाख से भी ज्यादा फोटोग्राफ्स, वीडियो, इलस्ट्रेशन्स और 3 डी इमेजरी के साथ दुनिया में सबसे बड़ा इमेज कलेक्शन बन चुका है।  यही नहीं 45 से भी देशों में 8,000 से भी ज्यादा क्लाइंट्स के साथ इमेजेज बाजार का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ को पार कर चुका है।
अपनी प्रगतिशील सोच के बल पर यह मुकाम हासिल करने वाले संदीप बताते हैं कि उन्होंने शुरुआत एक मिशन के साथ की थी। मिशन था हिंदुस्तान की विविधता, यहां की संस्कृति, रिश्ते, त्योहारों और भावनाओं को कैप्चर करना और उन्हें दुनिया के सामने बेहद खूबसूरती के साथ प्रस्तुत करना। वे खुशी के साथ कहते हैं कि उनका यह मिशन कामयाब हुआ है और इसमें उनकी टीम ने उनका काफी साथ दिया है।