फिल्म निर्माता-निर्देशकअनुराग कश्यप का सिनेमा जितना अलग नजर आता है, अनुराग की जिंदगी भी अपने समकालीन बच्चों से उतनी ही अलग थी। 'गुलाल', 'देव डी' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसी फिल्मों से हिंदी सिनेमा में अपनी अलग जगह बनाने वाले अनुराग कश्यप का बचपन उत्तरप्रदेश के एक छोटे से कस्बे ओबरा में बीता है। आज अनुराग कश्यप का जन्मदिन है। अनुराग का जन्म गोरखपुर में हुआ था। अनुराग आज इंडीपेंडेट सिनेमा की अगुवाई करने वाले निर्माता और निर्देशकों में से एक हैं। अनुराग की जिंदगी से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि एक दफा अनुराग और उनका दोस्त पोर्नोग्राफिक मैगजीन का आयडिया लेकर एक पब्लिशर के पास पहुंच गए थे।
अनुराग के पिता यूपी इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में इंजीनियर थे और कई शहरों में उनका ट्रांसफर होता रहा, लिहाजा अनुराग की परवरिश भी यूपी के अलग-अलग हिस्सों में होती रही। अनुराग ने ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में भी पढ़ाई की। इसी दौरान उनका रुझान पढ़ने की ओर बढ़ता गया और उन्हें जो भी किताब मिलती वह उसे पढ़ डालते। अनुराग ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि सिंधिया स्कूल में वह अपनी कमजोर इंग्लिश के चलते अपने बैचमेट से घुल-मिल नहीं पाते थे, नतीजतन उन्होंने स्कूल की लाइब्रेरी में वक्त गुजारना शुरू कर दिया।
स्कूल की लाइब्रेरी में ही उन्होंने हिंदी साहित्य के कई नामी रायटर्स को पढ़ा। मजेदार बात यह है कि शरत चन्द्र का मशहूर उपन्यास 'देवदास' अनुराग ने अपने स्कूल में ही पढ़ा था, जिसको आधुनिक रंग में रंगकर उन्होंने बड़े पर्दे पर अपनी बेहतरीन फिल्म 'देव डी' का निर्माण किया। अनुराग ने हालांकि एक इंटरव्यू के दौरान यह भी स्वीकारा था कि उन्हें शरत चन्द्र का उपन्यास 'देवदास' पसंद ही नहीं आया था। अनुराग को लिखने का शौक था, लेकिन उनकी रचनाएं कभी भी स्कूल की मैगजीन में नहीं छपती थी, जिससे बाद में उन्होंने इन रचनाओं को लोगों को दिखाना ही बंद कर दिया।
लखनऊ में की मेडिकल एजुकेशन की तैयारी
अपनी स्कूली शिक्षा निपटाने के बाद अनुराग ने कुछ समय लखनऊ में मेडिकल एजुकेशन की तैयारी भी की। अनुराग की दिलचस्पी बॉयोलॉजी में तो थी, लेकिन वह बावजूद इसके डॉक्टर नहीं बनना चाहते थे। अनुराग चाहते थे कि वह साइंटिस्ट बनें। इसके बाद अनुराग कश्यप दिल्ली चले आए। अनुराग ने खुद अपने एक इंटरव्यू में स्वीकारा था कि कॉलेज में लड़कियों के पीछे दौड़ते रहने से उनकी पढ़ाई पर इसका असर पड़ा और यह वही दौर था जब उनका झुकाव सिनेमा की ओर होने लगा।
गोविंदा और अमिताभ के थे दीवाने
अनुराग ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि वह अपनी कॉलेज लाइफ में गोविंदा और अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन थे। कॉलेज में अनुराग लड़कियों को इम्प्रैस करने के लिए रंगीन कपड़े भी पहनने लगे थे, जैसा कि आमतौर पर होता है। अब अनुराग मानते हैं कि वह दौर बेवकूफियों का जरूर था, लेकिन वह भी अपने ही रंग का दौर था।
दिल्ली में रंगमंच के आए करीब, हबीब तनवीर के ग्रुप में नहीं मिली जगह
कुछ समय लखनऊ में बिताने के बाद अनुराग कश्यप यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली पहुंच गए। यहीं उनके एक दोस्त ने उनकी मुलाकात थियेटर से करवाई, जिसके बाद वह यूपीएससी के बहाने थियेटर में मशगूल रहने लगे। इस दौरान अनुराग को सबसे ज्यादा हबीब तनवीर के नाट्य ग्रुप 'नया थियेटर' और वरिष्ठ रंगकर्मी एन.के. शर्मा के ग्रुप 'एक्ट वन' से लगाव था। यह वही ग्रुप है जिससे मनोज बाजपेई और पीयूष मिश्रा जैसे मंझे हुए कलाकार निकले हैं। अनुराग हबीब तनवीर के ग्रुप से इतने प्रभावित हुए कि वह इसे ज्वाइन करना चाहते थे, लेकिन उन्हें इस ग्रुप में जगह नहीं मिल सकी। बाद में अनुराग हबीब साहब के नाटकों के टिकट बेचने लगे और इसके बाद वह प्रगतिशील नाटकों के लिए मशहूर 'जन नाट्य मंच' से जुड़े।
पोर्नोग्राफिक मैगजीन निकालने की भी की कोशिश
अनुराग कश्यप से जुड़ा हुआ एक दिलचस्प मामला भी है। दिल्ली में अनुराग ने एक दौर में अपने दोस्त संग मिलकर एक पोर्नोग्राफिक मैगजीन निकालने की कोशिश भी की, जिसमें वह सफल नहीं हो सके। अनुराग चाहते थे कि समाज में जो घट रहा है उस पर एक कार्टून बेस्ड पोर्नोग्राफिक मैगजीन प्रकाशित की जाए। इस योजना में उनका एक दोस्त भी शामिल था। बाद में जब अनुराग और उनका दोस्त पब्लिशर के पास इस आयडिया के साथ पहुंचे तो उनकी बड़ी छीछलेदारी हुई। कहतें हैं पब्लिशर ने दोनों को बहुत बुरा-भला और अश्लील करार देते हुए मारकर भगाया था।
मुंबई, फिल्म फेस्टिवल और सिनेमा
अनुराग की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट मुंबई पहुंचना था। यहां पर अनुराग के पास कोई काम नहीं था और इसी दौरान मुंबई में एक फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हुआ था। यह 1993 की बात है। अनुराग ने इसी फिल्म फेस्टिवल में महज 10 दिनों में 50 फिल्में देख डाली। अनुराग सुबह फेस्टिवल के शुरू होने से लेकर शाम तक दिनभर में पांच फिल्में देखते थे। इस फेस्टिवल में वर्ल्ड सिनेमा से अनुराग रूबरू हुए और इसी ने उनकी जिंदगी के नजरिए को बदल कर रख दिया। इसके बाद अनुराग ने एक फिल्म कंपनी ज्वाइन कर ली।
मुफ्त पटकथा लेखन से ब्लॉकबस्टर 'सत्या' तक
अनुराग कश्यप ने फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगल के दिनों में बहुत सी ऐसी फिल्मों की पटकथा भी लिखी, जिनके क्रेडिट में न तो उनका नाम आया और ना ही उन्हें इस काम के एवज में पैसे ही मिले। बतौर पटकथा लेखक अनुराग को फिल्म 'सत्या' से पहचान मिली। इससे पहले अनुराग एक टीवी सीरियल 'कभी कभी' की स्क्रिप्ट भी लिख चुके थे। 'सत्या' के बाद अनुराग कश्यप ने एक से बढ़कर एक हिंदी फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी। इनमें 'शूल', 'जंग', 'नायक' और 'वाटर' जैसी फिल्में शामिल हैं।
पहली फिल्म जो रिलीज ही नहीं हुई
अनुराग ने बतौर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म 'पांच' नए कलाकारोंं को लेकर बनाई। इस फिल्म को बनाने की अनुराग की जिद थी। अनुराग से कहा गया कि इंडस्ट्री में नए कलाकरों के साथ फिल्म नहीं बनाई जा सकती और इसी बात को उन्होंने चैलेंज की तरह लिया। इस फिल्म में न केवल कलाकार नए थे बल्कि कैमरामैन से लेकर तमाम टेक्निशियन भी नए थे। इसी फिल्म से केके मेनन जैसे एक्टर्स ने भी अपने अभिनय की शुरुआत की थी, लेकिन दुर्भाग्य से इस फिल्म पर सेंसर ने रोक लगा दी और यह आज तक रिलीज नहीं हो सकी है।
'ब्लैक फ्राइडे' ने दिलवाई पहचान
'पांच' पर पाबंदी लगने के बाद अनुराग के सामने अपनी दूसरी फिल्म को बनाने के लिए संकट खड़ा हो गया। उन्हें अपनी फिल्मों के लिए प्रोड्यूसर्स ही नहीं मिल रहे थे, फिर किसी तरह से बात बनी और मुंबई बम ब्लास्ट पर आधारित फिल्म 'ब्लैक फ्राइडे' अनुराग ने बनाई। संयोग से उस दौरान कोर्ट में मुंबई बम ब्लास्ट केस का ट्रायल चल रहा था और कोर्ट ने इस फिल्म पर भी फैसला आने तक रोक लगा दी। तब तक यह फिल्म कई फिल्म फेस्टिवलों में धूम मचा चुकी थी। इस फिल्म को विदेशों में लोगों की खूब तारीफ मिली। दो साल बाद यह फिल्म 2007 में भारत में रिलीज हो सकी।
'देव डी' ने बनाया बड़ा फिल्मकार
अनुराग कश्यप कभी भी अपने फिल्मों के कैरेक्टर को ब्लैक एंड व्हाइट में प्रेजेंट नहीं करते हैं। ब्रॉड थीम के साथ ही लव और हिंसा का मिक्सचर लिए उनकी फिल्मों ने एक नया दर्शक सिनेमा में तैयार किया है। 'ब्लैक फ्राइडे' की सफलता के बाद अनुराग कश्यप ने 'नो स्मोकिंग' फिल्म बनाई, जिसके सब्जेक्ट के चलते अनुराग की खूब आलोचना हुई और अनुराग को फिर से इंडस्ट्री ने किनारे लगा दिया। इसके बाद अनुराग कश्यप की एक और फिल्म आई 'देव डी' जिसने 'देवदास' के आधुनिक संस्करण से युवाओं को न केवल रूबरू करवाया, बल्कि सफलता के झंडे भी गाड़ दिए। इस फिल्म को शुरू करने के लिए अनुराग को एक बड़ा समझौता भी करना पड़ा था। अनुराग ने इस फिल्म के बदले में अपनी फीस छोड़ने का करार किया और यह तय हुआ कि फिल्म चली तो मुनाफे का कुछ हिस्सा अनुराग को मिलेगा। इसी हिस्से से अनुराग की 'अनुराग कश्यप फिल्म प्राइवेट लिमिटेड' की भी शुरूआत हो गई जो आज लो बजट फिल्में बनाने के लिए मशहूर है।
Anurag Kashyap Films Office Contact Details
Anurag Kashyap Films Office Address : Bungalow No 40, Aram Nagar Part 1, Seven Bunglow, Andheri West, Mumbai – 400061, Maharashtra, India
Anurag Kashyap Films Phone Numbers : 022-26341090, 26302791
Anurag Kashyap Films Official Website : www.akfpl.com
सोजन्य--
अनुराग कश्यप के जीवन के बारे में पढ़कर बहुत कुछ सीखने को मिला ।जिंदगी का सफर ही कुछ ऐसा है। इंसान के हौसले अगर बुलंद हो तो कामयाबी एक दिन जरूर कदम चूमेगी ही ।
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